आम आदमी
वह आदमी आम है।
चूसो उसे
कर्ज की दहकती अग्नि में
तापो सर्द में
ठूसो उसे
और समझाओ
हमारी संस्कृति का अर्थ
बताने आएगा कभी
रूसो उसे
वह महान् भारत का
दीन घुटता किसान है
मूसो उसे
चूसो उसे
वह आदमी आम है।
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Editor:- Gautam Jha
बोझ
मैं
जीवन ढोता गधा-सा
मेरी कमर तोड़े दे रहा
भारी बोझ पीठ का ।
साहस कम
भय अगम
मुझे कदम-कदम
आगे बढ़ाए जा रहा
और
चाबुक धोबी का
मुझे खाए जा रहा।
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अच्छे लगते हैं
अच्छे लगते हैं
माटी सने पाँव
उस आदमी के होंगे
जो अभी भी किसी जमीन से जुड़ा है
अच्छे लगते हैं
छालों भरे पाँव
मन कहता है
उस आदमी के होंगे जो
माँ की गोद से उतरकर
दूसरों के कंधों पर नहीं
पाँव-पाँव चला है
अच्छा लगता है।
उसका चिथड़ों ढका जीवन
विश्वास होता है
उसने कभी किसी को ठगा नहीं है
प्रमाण है इस बात का
वह आदमी जीवन-संघर्ष छोड़ भगा नहीं है।
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Editor:- Gautam Jha
मेरी कविता
आप मुझे
मेरी कविता की तरह देख सकते हैं
बावजूद इसके
मैं कविता नहीं हूँ
संभव नहीं देखना
कविता को शब्दों में
और न ही होती है
कविता की कोई किताब
कविता तो
अपने भीतर भरे अर्थों में रहती है
जो शब्द-किनारों बीच
धारवार बहती है…
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